Friday 17 February 2012

हम

यूँही रास्तो पर भटकते भटकते 
मंजिल कब छूटी , पता नहीं...
अभी तो थक भी न पाए थे ,
दम कब टूटा पता नहीं...

यूँ तो हर शख्स हमशक्ल लगता है...
मेरा चेहरा किसी से हू ब हू मिलता है ...
अपनी आंखों में देखते देखते कब दर्पण टूटा पता नहीं ... 
अभी तो थक भी न पाए थे ,
दम कब टूटा पता नहीं...

खुदा मिला दे उस रहनुमा से ,
जो मेरे दिल का हाल, सम्हाल ले ,
सजदे में झुके झुके क्या अरसा हुआ पता नहीं...
अभी तो थक भी न पाए थे ,
दम कब टूटा पता नहीं...

मैं आवारा पंछी, ऊंचे गगन में दूर तलक...
ढूँढा हर जगह, देखा हर एक फलक,
मेरा खुदा क्यूँ इतना दूर था, पता नहीं 
अभी तो थक भी न पाए थे ,
दम कब टूटा पता नहीं...

कुछ लफ्ज छूट गए या जज्बात रूठ गए ...
कुछ गजल यूँही अधूरी रह गयी,
क्यूँ हुई बज्म में रुसवाई...पता नहीं..
अभी तो थक भी न पाए थे ,
दम कब टूटा पता नहीं...

 

Tuesday 29 November 2011

AABHAR

मेरी पहली रचना जो इन्टरनेट पर प्रकाशित हुई ..... प्रकाशित करने के लिए "हिंदी साहित्य मुंच" एवं श्री मिथिलेश धर दुबे जी का धन्यवाद् ...आपका आभार ...अजय आनंद मिश्र


http://www.hindisahityamanch.com/2011/11/blog-post_29.html

Friday 21 October 2011

दर्द की कहानी

है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...

होता है दूर , जो पास कभी होता है..
सीने का दिल ..आँखों से रोता है ..
आंसू बेशक बारे कीमती है तेरे...
न खोना किसी वादे के लिए..
है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...

साथ रहेगी बीते वक़्त की परछाइयां ...
खुशनुमा यादों का एक आइना ..
देख लेना मेरी वफ़ा को सनम...
जो कभी परछाइयों से फुरसत मिले..
है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...

तेरे दर्द से दिल आबाद है..
कोई दावा नहीं इसका  मय के सिवा ..
उस मय से भला मै क्यूँ गाफिल हुआ..
जो मय तेरे आँखों से मैंने पिए..
है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...

इस कहानी को कहानी ही रहने दे..
इस कहानी  का मुकम्मल अंजाम न हुआ..
कितनी रुसवाई होगी , तू सोच ले..
जो कोई भरी  महफ़िल में सुने...
है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...

मेरी दुआ है साथ तेरे..
तेरा हर लम्हा ख़ुशी से गुजरे ..
कभी गम मिले तो सोच लेना ..
ये गम अपनी जुदाई से बड़ा तो नहीं..
है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...


Monday 10 October 2011

खुद की तलाश

मैं कौन हूँ ?


एक सवाल हूँ ..

खुद उसका जवाब हूँ...

मैं दरिया हूँ..... समंदर की तलाश है...

मैं पंछी हूँ ..खुला आकाश है...

मैं ही सपनो की पीछे भागता हूँ...

मृग मरीचिका जान लौट आता हूँ..

मैं ही शायरों का सरताज हूँ...फिर भी गजल नहीं, न कोई आवाज़ है.

भागता हूँ ठोकरों से सम्हालता हूँ ....

रूठ कर मंजिल से नए रास्ते खोजता हूँ..

हसिनाओ का आशिक .......वज्र की ललकार हूँ ..

मैं नपुंसक, मैं ही भीरू ...

मैं ही कामदेव का अवतार हूँ

शक्ति की परिभाषा ...शौर्य का उदहारण ....मैं ही कायर ..डरपोक हूँ ..

उल्लास का विषय ...जीवन का शोक हूँ...

शाहखर्च हूँ...... जीवन की आय हूँ...

नास्तिक भी हूँ ........... इश्वर का न्याय हूँ ...

इतना जान कर मत सोचना की भगवान् हूँ...

अरे बन्दे मैं तो तेरी तरह ही "आम" इंसान हूँ ..

Wednesday 22 December 2010

मुझे इश्क हुआ .....

मुझे इश्क हुआ ,
हाँ जी , मुझे इश्क हुआ...
जिस जज्बात से महरूम था ....
उस जज्बे ने मुझको छुआ ....मुझे इश्क हुआ

गम के अल्फाज मेरी गजलों की कहानी नहीं ...
कोरा जज्बा है कोई निशानी नहीं..
खुदा को पा लिया मैंने...
मैंने नूर छुआ ....मुझे इश्क हुआ

उस नाजनी के चेहरे से शबनम की तरह..
बहता है दरिया समंदर से मिलने के लिए ...
हर मौज में एक अल्हरपन ...
हर कतरा एक पाक दुआ ....मुझे इश्क हुआ

उसके नूर को सजदा किया है काफिर ने...
ये आदत भी शामिल हुई मेरी कहानी में ....
सोचना भी छोड़ दिया ....
क्या भला क्या बुरा हुआ...
मुझे इश्क हुआ
हाँ जी, मुझे इश्क हुआ



Monday 23 August 2010

तल्खी

हर बात से नाराज हूँ ,
मैंने   तोड़  दिया हर साज़ ,
कुछ तल्खी सी है दिल में,
कोई धुन न बजी आज,

न सोचना कुछ भी न भूलना  कुछ भी
बस बाकि है एक उनकी यादाशत
कुछ तल्खी है दिल में कोई
धुन न बजी आज

हम तो तन्हा है तन्हा रहेंगे
भागता  रहे कोई अपने साये के साथ,
कुछ तल्खी सी है दिल में
कोई धुन न बजी आज

हम भी होगे महफ़िल में, जब होगा फैसला - ए- हुजूम
एक और मोहब्बत होगी कत्ल किसी काफ़िर के हाथ...
कुछ तल्खी सी है दिल में 
कोई धुन न बजी आज

कुछ मुनासिब उनको भी था आंसू बहाने का..
एक आशिक का जनाजा निकला उनके गली  से आज..
कुछ तल्खी सी है दिल में
कोई धुन न बजी आज

Sunday 15 August 2010

मासूम शरारत...................

उस मासूम शरारत का क्या कहना ....
सूनी सड़क पर तनहा टहलना .....
और पूछना हाल दिल का ...दिल्लगी से....
क्या याद है दिन मुफलिसी का....

कोई क़द्र नहीं ज़ज्बातों की.....
कोई फायदा नहीं वफ़ा का भी....
लूट कर कोई खुश था तो खुश रहे....
वक़्त था फिर से दिल की दौलत लुटाने का...
और पूछना हाल दिल का ...दिल्लगी से....

क्या याद है दिन मुफलिसी का....



मैं भी कितना पागल था ......
उसे आपना माना जो न कभी अपना था...
शिकवा शिकायतों का दौर ख़तम कर .......
वक़्त था मैखाने जाने का.......
और पूछना हाल दिल का ...दिल्लगी से....

क्या याद है दिन मुफलिसी का....
.
सबको मुबारक हो वक़्त इश्क में डूबा हुआ....
आँखे  नसीब की आह्ट सुने  बिना सपने बुनते हुए ......
मैंने भी दोस्ती की उसकी जो बदनाम है ज़माने में .......
क्यूँ शिकवा करू गम भूलते हुए....
लैब पे नाम उनका आया ....हर नाम से पीता गया....
और पूछना हाल दिल का ...दिल्लगी से....

क्या याद है दिन मुफलिसी का....