Sunday 15 August 2010

मासूम शरारत...................

उस मासूम शरारत का क्या कहना ....
सूनी सड़क पर तनहा टहलना .....
और पूछना हाल दिल का ...दिल्लगी से....
क्या याद है दिन मुफलिसी का....

कोई क़द्र नहीं ज़ज्बातों की.....
कोई फायदा नहीं वफ़ा का भी....
लूट कर कोई खुश था तो खुश रहे....
वक़्त था फिर से दिल की दौलत लुटाने का...
और पूछना हाल दिल का ...दिल्लगी से....

क्या याद है दिन मुफलिसी का....



मैं भी कितना पागल था ......
उसे आपना माना जो न कभी अपना था...
शिकवा शिकायतों का दौर ख़तम कर .......
वक़्त था मैखाने जाने का.......
और पूछना हाल दिल का ...दिल्लगी से....

क्या याद है दिन मुफलिसी का....
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सबको मुबारक हो वक़्त इश्क में डूबा हुआ....
आँखे  नसीब की आह्ट सुने  बिना सपने बुनते हुए ......
मैंने भी दोस्ती की उसकी जो बदनाम है ज़माने में .......
क्यूँ शिकवा करू गम भूलते हुए....
लैब पे नाम उनका आया ....हर नाम से पीता गया....
और पूछना हाल दिल का ...दिल्लगी से....

क्या याद है दिन मुफलिसी का....






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