Friday 21 October 2011

दर्द की कहानी

है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...

होता है दूर , जो पास कभी होता है..
सीने का दिल ..आँखों से रोता है ..
आंसू बेशक बारे कीमती है तेरे...
न खोना किसी वादे के लिए..
है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...

साथ रहेगी बीते वक़्त की परछाइयां ...
खुशनुमा यादों का एक आइना ..
देख लेना मेरी वफ़ा को सनम...
जो कभी परछाइयों से फुरसत मिले..
है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...

तेरे दर्द से दिल आबाद है..
कोई दावा नहीं इसका  मय के सिवा ..
उस मय से भला मै क्यूँ गाफिल हुआ..
जो मय तेरे आँखों से मैंने पिए..
है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...

इस कहानी को कहानी ही रहने दे..
इस कहानी  का मुकम्मल अंजाम न हुआ..
कितनी रुसवाई होगी , तू सोच ले..
जो कोई भरी  महफ़िल में सुने...
है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...

मेरी दुआ है साथ तेरे..
तेरा हर लम्हा ख़ुशी से गुजरे ..
कभी गम मिले तो सोच लेना ..
ये गम अपनी जुदाई से बड़ा तो नहीं..
है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...


4 comments:

  1. बहूत ही खूबसूरत लफ्जों में आपने अपने दर्द को बयान किया है
    हर शब्द में जज्बात बाहर आने को लालयित है
    अच्छी कविता लिखने के लिए बधाई

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  2. आपकी तारीफ के लिए धन्यवाद् ... बस अपना प्यार बनाये रखियेगा

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  3. aapne bahut hi khubsurat shabdo ka istemal kiya hai... bahut achchha likhte hai aap...likhte rahiye

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