है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...
होता है दूर , जो पास कभी होता है..
सीने का दिल ..आँखों से रोता है ..
आंसू बेशक बारे कीमती है तेरे...
न खोना किसी वादे के लिए..
है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...
साथ रहेगी बीते वक़्त की परछाइयां ...
खुशनुमा यादों का एक आइना ..
देख लेना मेरी वफ़ा को सनम...
जो कभी परछाइयों से फुरसत मिले..
है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...
तेरे दर्द से दिल आबाद है..
कोई दावा नहीं इसका मय के सिवा ..
उस मय से भला मै क्यूँ गाफिल हुआ..
जो मय तेरे आँखों से मैंने पिए..
है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...
इस कहानी को कहानी ही रहने दे..
इस कहानी का मुकम्मल अंजाम न हुआ..
कितनी रुसवाई होगी , तू सोच ले..
जो कोई भरी महफ़िल में सुने...
है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...
मेरी दुआ है साथ तेरे..
तेरा हर लम्हा ख़ुशी से गुजरे ..
कभी गम मिले तो सोच लेना ..
ये गम अपनी जुदाई से बड़ा तो नहीं..
है मुनासिब मोहब्बत को मंजिल न मिले...
न रोना कभी मेरी यादों तले ...
बहूत ही खूबसूरत लफ्जों में आपने अपने दर्द को बयान किया है
ReplyDeleteहर शब्द में जज्बात बाहर आने को लालयित है
अच्छी कविता लिखने के लिए बधाई
आपकी तारीफ के लिए धन्यवाद् ... बस अपना प्यार बनाये रखियेगा
ReplyDeleteaapne bahut hi khubsurat shabdo ka istemal kiya hai... bahut achchha likhte hai aap...likhte rahiye
ReplyDeleteधन्यवाद्
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